मुर्गीपालन ब्यवसाय से लाखों- करोड़ों कमा सकते हैं.

मुर्गीपालन ब्यवसायमुर्गीपालन ब्यवसाय एक ऐसा व्यवसाय है जो आपकी आय का अतिरिक्त साधन बन सकता है। बहुत कम लागत से शुरू होने वाला यह व्यवसाय लाखों-करोड़ों का मुनाफा दे सकता है। इसमें शैक्षणिक योग्यता और पूंजी से अधिक   अनुभव और मेहनत की दरकार होती है. आज के समय में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। ऐसे में युवा मुर्गीपालन को रोजगार का माध्यम बना सकते हैं।
अगर आपके पास औरों से अलग सोचने की क्षमता है, तो आप मुर्गीपालन ब्यवसाय से भी करोड़ों का मुनाफा कमा सकते हैं। मुर्गीपालन ब्यवसाय एक ऐसा व्यवसाय है जिसे बहुत कम लागत से शुरू करके लाखों- करोड़ों रुपए का लाभ कमा सकते हैं। सुगुना पोल्ट्री के बी सौदारराजन और जीबी सुंदरराजन का उदाहरण सबके सामने है। इन्होंने मुर्गीपालन ब्यवसाय के बहुत छोटे से अपनी शुरुआत की और देखते ही देखते उनका यह मुर्गीपालन ब्यवसाय 4200 करोड़ की कंपनी में बदल गया। और तो और इस कंपनी ने 18 हजार किसानों को भी आय का बेहतर अवसर प्रदान किया। भारत में पोल्ट्री की शुरुआत मुख्यतया 1960 से हुई। पिछले तीन दशकों में मुर्गीपालन ब्यवसाय ने उद्योग का रूप ले लिया है।
मुर्गीपालन ब्यवसाय एनिमल हसबैंड्री के तहत ही आता है जिस का उद्देश्य खाद्यान्नों में मीट और अंडों का प्रबंधन करना है। भारत के लगभग 30 लाख लोग मुर्गीपालन ब्यवसाय  से जुड़े हुए हैं और हर वर्ष सकल घरेलू उत्पाद में इसका 33 हजार करोड़ का योगदान है।
मुर्गीपालन ब्यवसाय भारत में 8 से 10 प्रतिशत वार्षिक औसत विकास दर के साथ कृषि क्षेत्र का तेजी के साथ विकसित हो रहा एक प्रमुख हिस्सा है। इसके परिणाम-स्वरूप भारत अब विश्व का तीसरा सबसे बड़ा अण्डा उत्पादक(चीन और अमरीका के बाद) तथा कबाब चिकन मांस का 5वां बड़ा उत्पादक देश (अमरीकाचीनब्राजील और मैक्सिको के बाद) हो गया है। कुक्कुट क्षेत्र का सकल राष्ट्रीय उत्पाद में करीब 33000 करोड़ रु. का योगदान है और अगले पांच वर्षों में इसके करीब 60000 करोड़ रु. तक पहुंचने की संभावना है। 352 अरब रुपए से अधिक के कारोबार के साथ यह क्षेत्र देश में 30 लाख से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध् कराता है तथा इसमें रोजगार के अवसरों के सृजन की व्यापक संभावनाएं हैं।
पिछले चार दशकों में मुर्गीपालन ब्यवसाय क्षेत्र में शानदार विकास के बावजूदकुक्कुट उत्पादों की उपलब्धता तथा मांग में काफी बड़ा अंतर है। वर्तमान में प्रति व्यक्ति वार्षिक 180 अण्डों की मांग के मुकाबले 46 अण्डों की उपलब्धता है। इसी प्रकार प्रति व्यक्ति वार्षिक 11 कि.ग्रा. मीट की मांग के मुकाबले केवल 1.8 कि.ग्रा. प्रति व्यक्ति कुक्कुट मीट की उपलब्धता है। इस प्रकारघरेलू मांग को पूरा करने के वास्ते अण्डों के उत्पादन में चार गुणा तथा मीट के उत्पादन में छः गुणा किए जाने की आवश्यकता है। यदि हम घरेलू मांग के साथ-साथ निर्यात बाजार में भारत के हिस्से का लेखा-जोखा देखें तो देश में कुक्कुट उत्पादों के उत्पादन में व्यापक अंतर है। जनसंख्या में वृद्वि जीवनचर्या में परिवर्तनखाने-पीने की आदतों में परिवर्तनतेजी से शहरीकरण,प्रति व्यक्ति आय में वृद्वि स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरुकतायुवा जनसंख्या के बढ़ते आकार आदि के कारण कुक्कुट उत्पादों की मांग में जबर्दस्त वृद्वि हुई है। वर्तमान बाजार परिदृश्य में कुक्कुट उत्पाद उच्च जैविकीय मूल्य के प्राणी प्रोटीन का सबसे सस्ता उत्पाद है।
भारत, चीन और अमरीका के बाद विश्व का सबसे ज्यादा अंडा उत्पादक देश है और अमरीका,चीन, ब्राजील और मैक्सिको के बाद विश्व का पांचवां सबसे से ज्यादा चिकन उत्पादक देश है।मुर्गीपालन ब्यवसाय से भारत में बेरोजगारी भी काफी हद तक कम हुई है। आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर बैंक से लोन लेकर मुर्गीपालन ब्यवसाय की शुरुआत की जा सकती है और कई योजनाओं में तो बैंक से लिए गए लोन पर सरकार सबसिडी भी देती है। कुल मिलाकर इस व्यवसाय के जरिए मेहनत और लगन से सिफर से शिखर तक पहुंचा जा सकता है।
मुर्गीपालन ब्यवसाय क्या है?

मांस और अंडे की उपलब्धता के लिए मुर्गी और बतख को पालने के व्यवसाय को मुर्गीपालन कहा जाता है। खाद्यान्नों की बढ़ती मांग ने इस व्यवसाय को चार चांद लगाए हैं।

मुर्गीपालन ब्यवसाय के लिये शैक्षणिक योग्यता:
इस व्यवसाय में आने के लिए शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता नहीं होती। फिर भी, एनिमल साइंस और जीव विज्ञान का ज्ञान होना जरूरी है। जो लोग वैटरिनरी साइंस में ग्रेजुएट हैं, वे पोल्ट्री फार्मिंग को व्यवसाय के रूप में चुन सकते हैं।
मुर्गीपालन ब्यवसाय के लिये आवश्यक व्यक्तिगत कौशल :
पोल्ट्री फार्म के व्यवसाय में कुछ कौशल होना अनिवार्य हैं। जिनमें से कुछ प्रमुख निम्न हैं-
 पोल्ट्री का ज्ञान हो ,जिसमें मुर्गियों की देखभाल भी शामिल है।
 मुर्गियों के स्वास्थ्य की देखभाल करने का ज्ञान।
 मुर्गियों को बीमारी से कैसे बचाना है, इसकी जानकारी।
 पोल्ट्री व्यवसायी के लिए मेहनती होना जरूरी है।
 पोल्ट्री फार्म के आसपास के इलाके के रखरखाव का ज्ञान हो।
 इस क्षेत्र के व्यवसायी के लिए स्वस्थ होना जरूरी है। उसे अस्थमा और दूसरी सांस संबंधी बीमारी नहीं होनी चाहिए।

पोल्ट्री सिर्फ चिकन और अंडों का व्यवसाय नहीं है। अब यह व्यवसाय इतना एडवांस हो गया है कि युवक और युवतियां इस में अपना कैरियर ब्रायलर, प्रोसेसिंग प्लांट मैनेजर, अनुसंधान, शिक्षा, बिजनेस, कंसल्टेंट, प्रबंधक, विज्ञापक, उत्पाद प्रौद्योगिकीविद, फीडिंग प्रौद्योगिकीविद, क्वालिटी कंट्रोल मैनेजर, हैचरी मैनेजर, पोल्ट्री वैटरिनेरियन, एग्रीकल्चरल इंजीनियर और जेनेटीसिस्ट के रूप में बना सकते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि योजनाबद्ध तरीके से मुर्गीपालन किया जाए तो कम खर्च में अधिक आय की जा सकती है। बस तकनीकी चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है। वजह, कभी-कभी लापरवाही के कारण इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को भारी क्षति उठानी पड़ती है। इसलिए मुर्गीपालन में ब्रायलर फार्म का आकार और बायोसिक्योरिटी (जैविक सुरक्षा के नियम) पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
कृषि विज्ञान केंद्र कोटवां के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ. एलसी वर्मा के मुताबिक मुर्गियां तभी मरती हैं जब उनके रखरखाव में लापरवाही बरती जाए। मुर्गीपालन में हमें कुछ तकनीकी चीजों पर ध्यान देना चाहिए। मसलन ब्रायलर फार्म बनाते समय यह ध्यान दें कि यह गांव या शहर से बाहर मेन रोड से दूर हो, पानी व बिजली की पर्याप्त व्यवस्था हो। फार्म हमेशा ऊंचाई वाले स्थान पर बनाएं ताकि आस-पास जल जमाव न हो। दो पोल्ट्री फार्म एक-दूसरे के करीब न हों। फार्म की लंबाई पूरब से पश्चिम हो। मध्य में ऊंचाई 12 फीट व साइड में 8 फीट हो। चौड़ाई अधिकतम 25 फीट हो तथा शेड का अंतर कम से कम 20 फीट होना चाहिए। फर्श पक्का होना चाहिए। इसके अलावा जैविक सुरक्षा के नियम का भी पालन होना चाहिए। एक शेड में हमेशा एक ही ब्रीड के चूजे रखने चाहिए। आल-इन-आल आउट पद्धति का पालन करें। शेड तथा बर्तनों की साफ-सफाई पर ध्यान दें। बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित रखना चाहिए। कुत्ता, चूहा, गिलहरी, देशी मुर्गी आदि को शेड में न घुसने दें। मरे हुए चूजे, वैक्सीन के खाली बोतल को जलाकर नष्ट कर दें, समय-समय पर शेड के बाहर डिसइंफेक्टेंट का छिड़काव व टीकाकरण नियमों का पालन करें। समय पर सही दवा का प्रयोग करें। पीने के पानी में ब्लीचिंग पाउडर का प्रयोग करें।
मुर्गा मंडी की गाड़ी को फार्म से दूर खड़ा करें। मुर्गी के शेड में प्रतिदिन 23 घंटे प्रकाश की आवश्यकता होती है। एक घंटे अंधेरा रखा जाता है। इसके पीछे मंशा यह कि बिजली कटने की स्थिति में मुर्गियां स्ट्रेस की शिकार न हों। प्रारम्भ में 10 से 15 दिन के अंदर तक दो वर्ग फीट के कमरे में 40 से 60 वाट के बल्ब का प्रयोग करने से चूजों को दाना-पानी ग्रहण करने में सुविधा होती है। इसके बाद 15 वाट बल्ब का प्रकाश पर्याप्त होता है।
पोल्ट्री व्यवसाय में आय की कोई सीमा नहीं है। इस कार्य क्षेत्र में आय आपकी मेहनत पर ही निर्भर करती है। आपके व्यवसाय का प्रसार कितना है आपकी आय भी उसी अनुपात में होगी।  अनुसंधान और शिक्षण के क्षेत्र में प्रतिमाह 40 से 50 हजार रुपए कमाए जा सकते हैं। निजी पोल्ट्री फार्म में अनुभव और योग्यता के आधार पर 20 हजार से 75 हजार प्रतिमाह कमाए जा सकते हैं।
कुक्कुट उत्पादों की इस बढ़ती मांग से कुक्कुट उद्योग में विभिन्न श्रेणियों के एक करोड़ से अधिक रोजगार सृजन की आशा है।
कुक्कुट विज्ञान में रोजगार के अवसर कुक्कुट विज्ञान में रोजगार के बहुत अवसर हैं। इसमें कोई व्यक्ति अनुसन्धानशिक्षाबिजनेस,कंसलटेंटप्रबंधकप्रजनकविज्ञापककुक्कुट हाउस डिजाइनरउत्पादन प्रौद्योगिकीविद प्रोसेसिंग प्रौद्योगिकीविद्फीडिंग प्रौद्योगिकीविद्प्रौद्योगिकीविद्कुक्कुट अर्थशास्त्री आदि का विकल्प चुन सकते हैं और इसके अलावा भी बहुत से अवसर हैं जो कि व्यक्ति विशेष की अभिरुचि तथा योग्यता पर निर्भर करता है। कुक्कुट विशेषज्ञ बनने तथा विशेषीकृत रोजगार हासिल करने के इच्छुक व्यक्तियों को सबसे पहले बी.वी.एससी. एवं ए.एच. की पढ़ाई (पशु-चिकित्सा विज्ञान और पशुपालन में स्नातक) पूरी करनी होती है। बी.वी.एससी. एवं ए.एच. का अध्ययन करने के लिए न्यूनतम योग्यता भौतिकीरसायन विज्ञान और जीव विज्ञान (पीसीबी) में10+2 है। स्नातक डिग्री पूरी करने के उपरांत कोई व्यक्ति कुक्कुट विषय-क्षेत्रों में विशेषज्ञ बनने के लिए एम.वी. एससी. (पशुचिकित्सा विज्ञान में मास्टर) का स्नातकोत्तर कार्यक्रम तथा संबद्व विषय में पी-एच. डी. कर सकता है।


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